UP Board Class 12 Previous Year Samanya Hindi Question Paper – यूपी बोर्ड कक्षा-12 संस्कृत पद खंड पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्न

UP Board Class 12 Previous Year Samanya Hindi Question Paper – यूपी बोर्ड कक्षा-12 संस्कृत पद खंड पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्न : 

इस पोस्ट में मैंने 12वी सामान्य हिन्दी, यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट संस्कृत पद खंड पर आधारित प्रश्न को बताया है। जो बोर्ड परीक्षा में पिछले 2019 से लेकर आज तक पूछें गये है। यहां दिये गये सभी प्रश्न सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रश्न पिछले कई वर्षों से लगातार यूपी बोर्ड परीक्षा में पूछा जा रहा है। इसलिए यहां दिए गए सभी प्रश्नों को जरूर तैयार कर ले। 

 

UP Board Class 12 Previous Year Samanya Hindi Question Paper - यूपी बोर्ड कक्षा-12 संस्कृत पद खंड पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्न

दिए गए श्लोक में से किसी एक का संदर्भ हिंदी में अनुवाद कीजिए।

प्रश्न-1

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्। 

वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के सुभाषितरत्नानि पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद- पीछे कार्य को नष्ट करने वाले तथा सम्मुख प्रिय (मीठा) बोलने वाले मित्र का उसी प्रकार त्याग कर देना चाहिए, जिस प्रकार मुख पर दूध लगे विष से भरे घड़े को छोड़ दिया जाता है।

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प्रश्न-2

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्। 

वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयनेव सम्पदः।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के सुभाषितरत्नानि पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद- बिना सोचे विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। आज्ञा परम आपत्तियां अर्थात घोर संकट का स्थान है। सोच विचार कर कार्य करने वाले व्यक्ति का गुना की लोभी अर्थात गुना पर ऊ जाने वाली संपत्तियां अर्थात लक्ष्मी स्वयंवरण करती हैं। यहां खाने का अर्थ यह है कि ठीक प्रकार से विचार कर किया गया कार्य ही फलीभूत होता है, अति शीघ्रता से बिना विचारे किए गए कार्य का परिणाम अहितकर होता है।

प्रश्न-3

न में रोचते भद्रं वः उलूकस्याभिषेचनम्। 
अक्क्रुद्धस्यं मुखं पश्य कथं क्क्रुद्धो भविष्यति ।।

उत्तर- संदर्भ : यह गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत देवदर्शिका’ के ‘जातक कथा’ पाठ के उलूजातकम् खंड से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : तुम्हारे उल्लू का राज्याभिषेक पसंद नहीं । इस आ क्रोधित का मुख्य तो देखो, न जाने क्रोध में कैसा होगा?

प्रश्न-4

काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्। 

व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलेहन वा।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : बुद्धिमान लोगों का समय काव्य एवं शास्त्रों की चर्चा के आनंद में व्यतीत होता है तथा मूर्ख लोगों का समय बुरी आदतों में, सोने में एवं झगड़ा झंझट में व्यतीत होता है।

 

प्रश्न-5

न चौरहार्यं न च राजहार्यं

न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि । 

व्यये कृते वर्द्धत एव नित्यम् 

विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : विद्या रूपी धर्म समस्त धरो में प्रधान अर्थात श्रेष्ठ है, क्योंकि न तो कर उसे चुरा सकता है, न राजा द्वारा छीना जा सकता है, न भाई बांट सकता है और न यह बोझ बनता है, अर्थात भर रूपी नहीं है और खर्च करने से या निरंतर बढ़ता जाता है अर्थात अन्य धरो के समान घटना नहीं। 

UP Board Class 12 Previous Year Samanya Hindi Question Paper

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प्रश्न-6

सुखार्थिनः कुते विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम् ।

सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : सुख चाहने वाले सुखार्थी को विद्या कहां और विद्या चाहने वाले विद्यार्थी को सुख कहा! सुख की इच्छा रखने वाले को विद्या पानी की छह त्याग देनी चाहिए और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख त्याग देना चाहिए।

प्रश्न-7

सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्। 

वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वदमेव सम्पदः।।

वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि।

लोकोत्तराणां चेतासि को नु विज्ञातुमर्हति ।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : बिना सोचे विचारे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए। आज्ञा परम आपत्ति अर्थात घोर संकट का स्थान है। सोच विचार कर कार्य करने वाले व्यक्ति का गुना की लोभी अर्थात गुना पर रीज़न वाले संपत्तियां अर्थात लक्ष्मी स्वयं वरण करती है। और साधारण पुरुषों अर्थात महापुरुषों के वजह से भी कठोर तथा पुष्प से भी कमल चित्रा अर्थात हृदय को भला कौन जान सकता है? 

 

प्रश्न-8

जल-बिन्दु निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः। 

स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : जल की एक-एक बूंद गिरने से क्रमशः घड़ा भर जाता है। समस्त विद्याओ, धर्म और धन को संग्रह करने का यही कारण, रहस्य है। अर्थात निरंतर उद्योग करते रहने से ही धीरे-धीरे यह तीनों वस्तुएं संग्रहित हो पाती हैं।

 

प्रश्न-9

निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु 

लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्। 

अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा 

न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : नीति में निपुण लोग निंदा करें या स्तुति अर्थात प्रशंसा करें, लक्ष्मी आए या अपनी इच्छा अनुसार चली जाए। चाहे आज ही मृत्यु हो अथवा युगों के बाद हो। धैर्यशाली पुरुष न्यायोचित मार्ग से पग भर भी नहीं डोलते हैं अर्थात विचलित नहीं होते हैं।

 

प्रश्न-10

प्रीणाति यः सुचरितैः पितरं स पुत्रो 

यद् भर्तुरेव हितमिच्छति तत् कलत्रम् । 

तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं यद् 

एतत्त्रयं जगति पुण्यकृतो लभन्ते ।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : जो पिता को अच्छे आचरण से प्रसन्न करता है ऐसा पुत्र, जो पति का ही हिट चाहती है ऐसी स्त्री, जो सुख और दुख में समान व्यवहार वाला है ऐसा मित्र, इन तीनों को संसार में पुर्नशाली जान ही पाते हैं।

 

प्रश्न-11

उदेति सविता ताम्रस्ताम्र एवास्तमेति च 

सम्पत्तौ विपत्तौ च महतामेकरूपता ।। 

जलबिन्दु निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः । 

स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : सूर्य उदित होते समय लाल होता है और अस्त होते समय भी लाल ही होता है। इस प्रकार संपत्ति और विपत्ति दोनों स्थितियों में महापुरुष एक रूप रहते हैं अर्थात सुख में हर्षित और दुख में पीड़ित नहीं होते, अपितु समभाव से सुख और दुख दोनों को ग्रहण करते हैं।

जल की एक-एक बूंद गिरने से कम से घड़ा भर जाता है। समस्त विद्याओ, धर्म और धन को संग्रह करने का यही कारण, रहस्य है। अर्थात निरंतर उद्योग करते रहने से ही धीरे-धीरे यह तीनों वस्तुएं संग्रहित हो पाती हैं।

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प्रश्न-12

अभूत प्राची पिङ्गा रसपतिरिव प्राप्य कनकम्। 

गतच्छायश्चन्द्रो बुधजन इव ग्राम्य सदसि । 

क्षणं क्षीणास्तारा नृपतय इवानुद्यमपराः। 

न दीपा राजन्ते द्रविणरहिंतानामिव गुणाः।।

प्रश्न-13

अये लाजानुच्चैः पथि वचनमाकर्ण्य गृहिणी 

शिशौ कणौ यत्नात् सुपिहितवती दीनवदना ।।

 मयि क्षीणोपाये यदकृतं दृशावश्रुबहुले 

तदन्तः शल्यं में त्वमसि पुनरुद्धर्तुमुचितः।।

प्रश्न-14

विरलविरलाः स्थूलास्ताराः कलाविव सज्जनाः 

मन इव मुनेः सर्वत्रैव प्रसन्नममून्नभः ।।

 अपसरति च ध्वान्तं चित्तात्सतामिव दुर्जनः

ब्रजति च निशा क्षिप्रं लक्ष्मीरनुद्यमिनामिव ।।

UP Board Class 12 Previous Year Samanya Hindi Question Paper

प्रश्न-15

व्यतिषजति पदार्थानान्तरः कोऽपि हेतुः 

न खलु बहिरूपाधीन् प्रीतयः संश्रयन्ते। 

विकसति हि पतङ्गस्योदये पुण्डरीकं 

द्रवति च हिमरश्माबुद्गते चन्द्रकान्तः ।।

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : कोई आंतरिक कारण ही पदार्थों को परस्पर मिलता है। निश्चय ही प्रेम बाह्य कर्म पर आश्रित नहीं होता क्योंकि सूर्योदय होने पर कमल खिलता है और चंद्रमा का उदय होने पर चंद्रकांत मणि गलती है।

 

प्रश्न-16

जयन्ति ते महाभागा जनसेवा परायणाः।

जरामृत्युभयं नास्ति येषां कीर्तितनोः क्वचित्।।

 

प्रश्न-17

सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम 

सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी या त्यजेत् सुखम् 

विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय। 

खलस्य साधोः विपरीतमेतज्ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।।

उत्तर – संदर्भ : यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : सुख चाहने वालों को विद्या कहां और विद्या चाहने वाले विद्यार्थी को सुख कहा? इसलिए सुख की इच्छा वाले को विद्या प्राप्त करने की इच्छा छोड़ देनी चाहिए अथवा विद्या चाहने वाले विद्यार्थी को सुख छोड़ देना चाहिए। 

दुष्ट की विद्या विवाद के लिए, धन मद के लिए और शक्ति दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के लिए होती है। इसके विपरीत सज्जन की विद्या ज्ञान के लिए, धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए होती है।

 

प्रश्न-18

भाषासु मुख्या मधुरा दिव्या गीर्वाणभारती। 

तस्या हि मधुरं काव्यं तस्मादपि सुभाषितम्।।

उत्तर- सन्दर्भ : यह श्लोक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : भाषाओं में संस्कृत सबसे प्रधान, मधुर और अलौकिक है। उससे (अधिक) मधुर उसका काव्य है और उस (काव्य) से (अधिक) मधुर उसके सुभाषित (सुन्दर वचन या सूक्तियाँ) हैं।

 

प्रश्न-19

विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।

खलस्य साधोः विपरीतमेतज्ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।। 

उत्तर- संदर्भ : यह श्लोक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘सुभाषितरत्नानि’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।

हिंदी अनुवाद : दुष्ट की विद्या विवाद के लिए, धन मद के लिए और शक्ति दूसरों को पीड़ा पहुँचाने के लिए होती है। इसके विपरीत सज्जन की विद्या ज्ञान के लिए, धन दान के लिए और शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए होती है।

 

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