Class 10 Science Chapter 16 Notes in Hindi – प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कक्षा 10 नोट्स

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Class 10 Science Chapter 16 Notes in Hindi – प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कक्षा 10 नोट्स

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प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कक्षा 10 नोट्स
प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कक्षा 10 नोट्स

 

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का, एक नई पोस्ट में, इस पोस्ट में हम लोग कक्षा-10वी के अध्याय-16 जिसका नाम प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन है, को देखने वाले हैं। इस पोस्ट में हम लोग इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण Topics तथा परीक्षा उपयोगी प्रश्नों को भी देखेंगे।

 

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Class 10 Science Chapter 16 Handwritten Notes in Hindi

Text Book  NCERT
Class  10th
Subject  विज्ञान
Chapter  अध्याय 16
Chapter Name  प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन 
Category Class 10 Science Notes 
Medium  Hindi Medium 

 

प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कक्षा 10 विज्ञान नोट्स Class 10 Science Chapter 16 Handwritten Notes in Hindi

वे पदार्थ, जो मानव के लिए उपयोगी हो अथवा जिन्हें उपयोगी उत्पाद में रूपांतरित किया जा सके या जिनका उपयोग किसी उपयोगी वस्तु के निर्माण में किया जा सके, संसाधन कहलाते हैं। वे संसाधन जिन्हें प्रकृति से प्राप्त किया जाता है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं।  प्राकृतिक संसाधन प्रकृति में हवा, जल, मृदा, खनिज, जंतु तथा उत्पाद को रुप में संग्रहित होते हैं। 

प्राकृतिक संसाधनों को दो श्रेणियों में बाटा गया है-

  1. अक्षय संसाधन (Inexhaustible) 

अक्षय संसाधन, वह संसाधन है जिनके प्रकृति में असीमित भंडार है तथा प्रकृति में इनका चक्रण या पुनर्स्थापन किया जा सकता है। वायु, सौर ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, मृदा, बालू, जल आदि अक्षय संसाधन के उदाहरण है।

  1. क्षयकारी या समाप्य संसाधन (Exhaustible)

क्षयकारी या समाप्य संसाधन, वह संसाधन है जिनके प्रकृति में सीमित भंडार है तथा प्रकृति में इनका चक्रण या पुनर्स्थापन नही किया जा सकता है। जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम आदि इस प्रकार के संसाधन है।

इस प्रकार के संसाधन दो प्रकार के होते हैं-

1.नवीकरणीय संसाधन (Renewable Resources)

ऐसे प्राकृतिक संसाधन जिनका प्रकृति में नियमित रूप से पुनर्उत्पादन या पुनर्भरण होता रहता है,  नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। इस संसाधनों का लगता बड़े स्तर पर प्रयोग करने से यह पूरी तरह समाप्त भी हो सकते हैं।  जैसे- वन,  वन्य जीव

अनवीकरणीय संसाधन (Non-Renewabl Resources)

यह संसाधन ऐसे हैं जो एक बार उपयोग कर समाप्त कर दिया गया तो पुनः इन्हें निर्मित नहीं किया जा सकता। जैसे – कोई जैविक जाति एक बार पृथ्वी से विलुप्त हो जाती है तो उसे मानो फिर से निर्मित नहीं कर सकता है। 

विभिन्न प्रकार के संसाधन (Different Types of Resources)

निम्नलिखित संसाधन मानव कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है- मृदा, जल, भूमि, ऊर्जा, खनिज तथा समुद्रीय उत्पाद

मृदा संसाधन (Soil Resources) 

किसी क्षेत्र में जीवन की विजेता को निर्धारित करने में मृदा की महत्वपूर्ण भूमिका होती आता है, यह एक महत्वपूर्ण संपदा है।

जल संसाधन (Water Resource) 

सभी जीवो सूक्ष्म जीवाणु से लेकर बहुकोशिकीय पौधे व प्राणियों के शरीर में जल उनके जीवित रहने के लिए आवश्यक है। पृथ्वी की सतह का 3/4 भाग समुद्र से घिरा है। यह पृथ्वी के जल का 97.5% भाग है जो कि समुद्र में खारे जल के रूप में रहता है। शेष 2.5% मीठा जल है किंतु यह भी पूर्णतया मानव की योग के लिए उपलब्ध नहीं होता है। मीठे जल का अधिकतर हिस्सा ध्रुवीय या हिमखंड के रूप में रहता है। शेष अलवणीय मीठा जल,  भूमिगत जल 0.5% तथा झरना एवं नदियों में 0.012 प्रतिशत, मृदा में 0.1% और वायुमंडल में जल 0.001 प्रतिशत हिस्सा ही मानव प्रयोग के लिए उपलब्ध रहता है। 

भू संसाधन (Land Resource) 

पृथ्वी का एक चौथाई भाग वन, घास स्थल खेतों, शहरों तथा ग्रामीण बस्तियों से घिरा हुआ है। वन तथा घास स्वस्थ स्थल स्थलीय संसाधन है। निचले भागो का क्षेत्र जल से भरा रहता है तथा नम भूमि कहलाता है।

ऊर्जा संसाधन (Energy Resource)

ऊर्जा संसाधन दो प्रकार के होते हैं-

(i) अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन

जीवाश्म ईंधन तथा परमाणु ऊर्जा जैसे संसाधन को अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधन कहा जाता है। जीवाश्म ईंधन में पेट्रोलियम उत्पाद, प्राकृतिक गैस तथा कोयला आते हैं। परमाणु ऊर्जा यूरेनियम के नाभिकीय विखंडन से प्राप्त होती है। विश्व में जीवाश्म ऊर्जा तथा यूरेनियम का भंडार सीमित है अतः यह धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा।

(ii) नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन

इन संसाधनों का अनिश्चित काल तक उपयोग किया जा सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा का साधारणतः जीवाश्म ऊर्जा तथा नाभिकीय ऊर्जा की तुलना में पर्यावरण पर बहुत कम विपरीत प्रभाव पड़ता है। सौर ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा,  भू-ताप ऊर्जा समुद्र की लहरें और ज्वार ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा के उदाहरण है।

खनिज संसाधन (Mineral Resources)

हमारे उद्योग एवं दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले आवश्यक खनिजों का पृथ्वी में सीमित भंडार है। इनमें से चांदी, तांबा, पारा, टंगस्टन इत्यादि लगभग 100 वर्षों में समाप्त हो जाएंगे। लोहा तथा एल्यूमिनियम आसानी से प्राप्त खनिज है। बालू, पत्थर, लवण, फास्फेट इत्यादि भी खनिज संसाधन का उदाहरण है।

प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन तथा संरक्षण (Management and Conservation of Natural Resources) 

वर्तमान में प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग एवं उनके द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट के उत्पादन को कम करने हेतु 3R पद्धति का उपयोग किया जाता है। 

3R आर का मतलब- Reduce(कम उपयोग करना)  Recycle(पुन: चक्रण) Reuse(पुनः उपयोग करना) इस 3R पद्धति का पालन करके हम प्राकृतिक संसाधनों का सही प्रबंध कर पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं। इन तीनों पद्धतियों के बारे में हम अच्छे से जानकारी प्राप्त करेंगे।

  1. कम उपयोग करना (Reduce) 

इसका मतलब है कि कम से कम वस्तुओं का उपयोग करना जो हमें प्राकृतिक से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होती है। जैसे- जल को व्यर्थ नहीं बहाना।

  1. पुनः चक्रण(Recycle)

इसका मतलब है कि अनेक व्यर्थ पदार्थों जैसे- प्लास्टिक,  कांच, कागज,  धातु की वस्तुएं तथा ऐसे ही अनेक पदार्थों का पुनर्चक्रण करके उनसे उपयोगी वस्तुएं बनाई जा सकती है। पुनर्चक्रण के लिए आवश्यक है कि अनुपयोगी वस्तु को फेंकने से पहले उनमें से ऐसे पदार्थों को छांट कर अलग करना होगा जिनका पुनर्चक्रण किया जा सकता है। 

  1. पुनः उपयोग करना (Reuse) 

इसका मतलब है कि एक वस्तु जो किसी विशेष उपयोग के लिए बनाई गई और उसका उस रूप में उपयोग करने के पश्चात एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि उसका और अधिक उपयोग उस विशेष उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता, तो उसका उपयोग अन्य किसी कार्य में कर लिया जाते हैं। जैसे- कपड़ों की कतरन, फटे पुराने कपड़ों से दरिया,  पायदान तथा अनेकों सजावटी सामान बनाए जा रहे हैं।

प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता (Need for Natural Resources Management)

संसाधनों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना आवश्यक है, क्योंकि-

1.पृथ्वी पर संसाधन सीमित है एवं मानव जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण संसाधनों की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

2.प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रबंधन दीर्घकालिक महत्व पर विचार करता है और अल्पकालिक लाभ के लिए उनके शोषण को पूर्णतया रोकता है।

3.संसाधनों का वितरण कुछ अमीर व शक्तिशाली लोगों के हाथ में ना जाकर सभी के लिए समान होना चाहिए।

4.संसाधनों के शोधन तथा उपयोग को नियंत्रित कर पर्यावरण को क्षति से बचाया जा सकता है।

वन (Forests) 

भू-भाग पर प्राकृतिक रूप से स्वत: ही उगने एवं बढ़ने वाले पेड़-पौधों, वृक्षों एवं झाड़ियों के सघन आवरण को वन कहते हैं। वनों की आर्थिक व पर्यावरणीय उपयोगिता के कारण ही इन्हें संसाधन माना जाता है तथा यह वन संसाधन कहलाते हैं। 

वनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है?

वनों का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि-

  1. वनों से ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है जो कि समस्त जीव धारियों के लिए प्राणवायु है।
  2. वनों से घरेलू उपयोग के लिए वस्तुएं जैसे पशुओं के लिए चारा इंधन हेतु लकड़ी फल व औषधिया प्राप्त होती है।
  3. वनों से कागज, रबर, कत्था, माचिस, फर्नीचर, खेल उपकरण, तारपीन का तेल आदि उद्योग हेतु कच्चा माल उपलब्ध होता है।
  4. वन पर्यावरणीय संतुलन को स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पर्यावरण प्रदूषण को काम करते हैं तथा जैव-विविधता बनाए रखते हैं।
  5. वन बाढ़ नियंत्रण में भी सहायक होते हैं, यह बाढ़ के जल की तीव्रता को कम कर देते हैं।
दावेदार (Stakeholders)

किसी परियोजना या इसके परिणाम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रुचि या सरोकार रखने वाला व्यक्ति समूह संगठन दावेदार या अधिकार पत्रधारी कहलाता है। 

वन संरक्षण से संबंधित दावेदार निम्नलिखित हैं –

  1. स्थानीय लोग (Local People)

वे लोग जो वन या जंगल में और उसके आस-पास रहते हैं तथा अपना जीवनयापन करने के लिए वन उपज पर कुछ सीमा तक निर्भर होते हैं, स्थानीय लोग कहलाते हैं।

  1. वन-विभाग (Forest Department)

भारतीय राज्य सरकार के वन विभाग का कानूनन वन भूमि पर स्वामित्व होता है और यह वन के संसाधनों को नियंत्रित करता है।

संपोषित प्रबंधन (Sustainable Management)

प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को नियंत्रित एवं नियमित करने वाला वह प्रक्रम या तंत्र या विधि जो पर्यावरण को प्रभावित या असंतुलित किए बिना संसाधनों की अगली पीढ़ियों हेतु सतत उपलब्धता सुनिश्चित करता है प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन कहलाता है।

संपोषित विकास की अवधारणा (Concepts of Sustainable Development)

विकास की इस प्रक्रिया का उद्देश्य प्राकृतिक तंत्र तथा उसके उत्पादकता ओं को लंबे समय तक पर्यावरण को कोई हानि पहुंचाए बिना बनाए रखना है। 

वन संरक्षण (Forest Conservation) 

वन संरक्षण के दो महत्वपूर्ण भाग है पहला वर्तमान वन क्षेत्रों की पूर्ण सुरक्षा करना तथा दूसरा वन क्षेत्रों का विकास करना। 

वन संरक्षण हेतु कुछ उपाय निम्नलिखित हैं-

वनोन्मूलन पर रोक : 

वनों को काटने पर प्रभावशाली ढंग से रोक लगाकर, वर्तमान वन क्षेत्रों की रक्षा की जा सकती हैं।

वनों को संरक्षित करना : 

वनों को स्थानीय व्यक्तियों जंतु तथा व्यवसायिक दोहन से सुरक्षित करना चाहिए। इसके लिए अधिक संख्या में राष्ट्रीय उद्यान वन्य जीव अभ्यारण आदि की स्थापना करनी चाहिए। 

 सामाजिक वानिकी : 

इसके अंतर्गत व्यक्तियों के समूह तथा सामाजिक संस्थाएं खाली स्थानों, सड़कों तथा रेल मार्गो के किनारे ऐसे पौधों एवं वृक्षों को लगाते हैं जो शीघ्रता से विकसित हो सके।

शहरी वानिकी : 

इसके अंतर्गत सारी क्षेत्रों में विभिन्न उपयुक्त स्थानों पर वृक्षों को रोपित किया जाता है। इससे शहरों में ध्वनि प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण को कम करने में सहायता मिलती है।

जल संसाधनों का प्रबंधन (Management of Water Resources)

कई सालों से खेती तथा दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बांध, कुंड तथा नहरों का उपयोग किया जा रहा है। बांधों में संग्रहित जल का नियंत्रित उपयोग किया जाता है। अधिकतर फसल उत्पादन के तरीके जल की उपलब्धता पर आधारित है।

जल स्रोतों का प्रबंधन निम्न विधियों द्वारा किया जा सकता है-

(i) बांध (Dams)

नदियों के जल को रोक के रखने के लिए इन विशाल संरचनाओं का निर्माण किया जाता है। यह जल को अधिक मात्रा में संचित रखते हैं। इन में संग्रहित जल का उपयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है।

बांधों का उद्देश्य एवं उपयोग (purpose and uses of dams)

बांध में संग्रहित जल का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है-

  1. सिंचाई के लिए
  2. विद्युत के उत्पादन में
  3. वर्षा ऋतु के दौरान आने वाले बाढ़ को बांधों में जल संग्रहण करके रोका जा सकता है
  4. जिस स्थान पर जल की आवश्यकता है नहर परियोजना द्वारा अधिक दूरी तक भी जल पहुंचाया जा सकता है

बड़े बांध की आलोचना (Criticism About Large Dams)

बड़े बांध के विरोध में मुख्यतः तीन समस्याएं आती है-

  1. सामाजिक समस्याएं : 

इससे बड़ी संख्या में किसानों स्थानीय लोग एवं आदिवासी विस्थापित होते हैं और उन्हें उचित मुआवजा भी नहीं मिलता है।

  1. आर्थिक समस्याएं 

इनमें जनता का बहुत अधिक धन लगता है और उस अनुपात में अपेक्षित लाभ प्राप्त नहीं होता है।

  1. पर्यावरणीय समस्याएं

इससे बड़े अस्तर पर वनों का विनाश होता है जिससे स्थानीय जैवविविधता की क्षति होती है।  यह क्षेत्र को भूकंप संवेदि भी बना देते हैं।

(ii) जल संग्रहण (Water Harvesting)

इसका अर्थ है आज स्थानीय क्षेत्र जहां वर्षा जल भूमि पर गिरता है या प्रवाहित होता है, में जल का संग्रहण करना।

जल संग्रहण की परंपरागत विधियां (Conventional Methods of Water Harvesting)

भारत में, अधिकाधिक वर्षा जल जो भूमि पर गिरता है, को रोकने के लिए स्थानीय लोग ने अनेक जल एकत्रीकरण विधियों का उपयोग करते हैं, जो निम्न प्रकार है-

  1. छोटे गड्ढों तथा जिलों या तालाबों की खुदाई
  2. छोटे मृद बांधों का निर्माण या तटबंधन करना।
  3. बांधो या नेहरू का जल रोकने के लिए मिट्टी की लंबी दीवारों का निर्माण करना।
  4. बालू तथा चुना पत्थर द्वारा जलाशयों का निर्माण करना।
  5. घरों की छतों के ऊपर जल का संचयन इकाइयों की स्थापना करना।

FAQs_________________

प्रश्न 1-जीवमंडल क्या है? सविस्तार वर्णन कीजिए।

उत्तर – जीवमंडल (Biosphere) :  पृथ्वी मंडल का वह भाग जहां जीव या जीवन पाया जाता है जीवमंडल कहलाता है।

समुद्र की सतह से लगभग 6 किलोमीटर की ऊंचाई तक तथा 8 किलोमीटर समुद्र की गहराई तक पौधे और जंतु पाए जाते हैं। अतः जल, अस्थल व वायु के इस 14 किलोमीटर विस्तार को जिसमें जीवधारी पाए जाते हैं जीवमंडल कहते हैं। 

जीवमंडल एक ऐसी इकाई है जिसमें तीनों मंडल (जलमंडल, थलमंडल, वायुमंडल) तथा उनमें रहने वाले जीव सम्मिलित होते हैं। मनुष्य भी जीव मंडल का एक आंसर आया और अपनी प्रतिदिन की जरूरतों के लिए जीवमंडल के विभिन्न घटकों पर आश्रित होता है।

प्रश्न 2-ह्यूमस किसे कहते हैं?

उत्तर- मृदा एक मिश्रण है। इसमें विभिन्न आकार के छोटे-छोटे टुकड़े मिले होते हैं इसमें सड़े गले जीवो के टुकड़े भी मिले होते हैं जिसे ही ह्यूमस कहते हैं।

प्रश्न 3-जल संरक्षण के उपाय को लिखिए।

उत्तर- जल संरक्षण के प्रमुख उपाय इस प्रकार है –

  1. सिंचाई की दक्षता बढ़ाकर कृषि जल की बर्बादी को रोकना।
  2. उद्योग के उपयोग में लाए गए जल के पुनर्चक्रण द्वारा जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
  3. घरेलू अपशिष्ट जल को, अपशिष्ट जल संयंत्र निर्माण द्वारा पुनः उपयोग में लाकर तथा उस जल के पुनर्चक्रण द्वारा घरेलू जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
  4. वर्षा जल को एकत्र करके तथा भूमिगत जल का पुनर्भरण कर जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
प्रश्न 4-जल संग्रहण किसे कहते हैं?

उत्तर- वर्षा के जल को इकट्ठा करने को जल संग्रहण कहते हैं। पक्की छतों पर पड़ने वाले वर्षा के जल को पाइप द्वारा भूमिगत टैंक से जोड़ दिया जाता है। मिट्टी के छोटे बांध या भूमि खोदकर तलाब बनाना भी जल संग्रहण ही है।

प्रश्न 5-वन संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।

उत्तर-वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो। दूसरे शब्दों में जब पर्यावरण अथवा वन संरक्षित किए जाएं, उनके सुनियोजित उपयोग का लाभ और स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। या विकेंद्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है जिससे आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिकी संरक्षण दोनों साथ साथ चल सकते हैं। सरकारी आज्ञा से वृक्ष काटने पर सम्मान संख्या में वृक्षों का रोपण किया जाना चाहिए।

 

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