Electrochemistry Class 12th Notes Pdf in Hindi – 12th Electrochemistry Handwritten Notes Pdf – कक्षा 12वी वैद्युत रसायन अध्याय-2 नोट्स पीडीएफ 

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Electrochemistry Class 12th Notes Pdf in Hindi – 12th Electrochemistry Handwritten Notes Pdf – कक्षा 12वी वैद्युत रसायन अध्याय-2 नोट्स पीडीएफ 

इस पोस्ट के अंतर्गत, कक्षा 12 वीं रसायन विज्ञान अध्याय-2 वैद्युत रसायन का संपूर्ण नोट्स दिया गया है। जिसे आप ऑनलाइन के माध्यम से पढ़ सकते हैं। यदि आपको कहीं भी किसी टॉपिक्स में प्रॉब्लम होती है तो आप हमें कमेंट कर पूछ सकते हैं। 

Electrochemistry Class 12th Notes Pdf in Hindi - 12th Electrochemistry Handwritten Notes Pdf - कक्षा 12वी वैद्युत रसायन अध्याय-2 नोट्स पीडीएफ
Electrochemistry Class 12th Notes Pdf in Hindi

वैद्युत रसायन

 (Electrochemistry) 

भौतिक रसायन विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वैद्युत ऊर्जा और रासायनिक ऊर्जा के बीच सम्बन्ध तथा पारम्परिक ऊर्जा परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता हैं, वैद्युत रसायन (Electrochemistry) कहलाती है।

ऐसे पदार्थ जिनमें से विद्युत धारा प्रवाहित होती है, विद्युत चालक (Conductor) कहलाते हैं तथा वे पदार्थ जिनमें से विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है, अचालक (Non-Conductor) कहलाते हैं। 

विद्युत चालक दो प्रकार के होते हैं-

1.धात्वीय चालक (Metallic Conductors)

ऐसे पदार्थ जिनमें बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के विद्युत धारा प्रवाहित होती है,धात्विक चालक कहलाते हैं; जैसे—Cu, Ag, Al आदि।

2.विद्युत अपघट्य (Electrolyte)

ऐसे पदार्थ जिनके जलीय . विलयन में अथवा गलित अवस्था (Fused State) में विद्युत धारा का प्रवाह होता है, विद्युत अपघट्य कहलाते हैं। ये पदार्थ गलित अवस्था या जलीय विलयन में विघटित हो जाते हैं। जिसके फलस्वरूप आयन बनते हैं। इन आयनों के कारण ही विद्युत धारा का प्रवाह होता है; जैसे – NaCl, MgCl2 आदि ।

विद्युत अपघट्य दो प्रकार के होते हैं-

(i) प्रबल विद्युत अपघट्य— ऐसे विद्युत अपघट्य जो जलीय विलयन में पूर्णतया आयनीकृत हो जाते हैं, प्रबत्न विद्युत अपघट्य कहलाते हैं। जैसे – NaCl, KNO3, HCl आदि।

(ii) दुर्बल विद्युत अपघट्य – ऐसे विद्युत अपघट्य, जो जलीय विलयन में अल्प वियोजित होते हैं दुर्बल विद्युत अपघट्य कहलाते हैं। जैसे— CH,COOH, NH OH, H2CO3, बोरिक अम्ल (H, BO3 ) आदि।

वैद्युत अपघटनी विलायको का चालकत्व 

धात्विक चालकों की तरह विद्युत अपघटनी विलयन भी ओम के नियम का पालन करते हैं। “किसी विद्युत अपघटय के विलयन या उसकी गलित अवस्था में से विद्युतधारा प्रवाहित होने का गुण वैद्युत अपघटनी चालकत्व कहलाता है।”

(1) ओम का नियम (Ohm’s law) – इस नियम के अनुसार, किसी विद्युत अपघटनी चालक में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा (i) चालक सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर (V) के समानुपाती होती है।

 अर्थात्       V ∝  I

              V = iR

 जहां R एक स्थिरांक है जिसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं।

(2) चालकता (Conductivity) : किसी विद्युत अपघटनी चालक के प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालकता या विद्युत चालकता कहते हैं। इसे C प्रदर्शित करते हैं।

                C = 1/R 

इसका मात्रक सीमेंट होती है। इसे प्रति ओम या म्हो भी कहा जाता है।

चालकता को प्रभावित करने वाले कारक

विद्युत अपघट्य विलयन की चालकताएँ निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती हैं-

(i) विलायक की प्रकृति-विलायक का डाइ- इलेक्ट्रिक स्थिरांव अधिक होने पर चालकता का मान अधिक तथा कम होने प चालकता का मान कम हो जाता है।

(ii) ताप का प्रभाव – ताप बढ़ने पर चालकता में वृद्धि होती है इसका कारण है कि ताप बढ़ाने पर आयनों की गति बढ़ जाती तथा विलायक की श्यानता कम हो जाती है।

(iii) विद्युत अपघट्य की प्रकृति-प्रबल विद्युत अपघट्यों की चालकता दुर्बल विद्युत अपघट्यों की चालकता से अधिक होती है। 

(3) विशिष्ट प्रतिरोध (Specific Resistance ) —

किसी विद्यु अपघटनी चालक का प्रतिरोध (R) निम्न बातों पर निर्भर करती है-

(i) चालक के लम्बाई (l) के समानुपाती होती है, 

अर्थात्            R ∝  L

(ii) चालक के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होत है, 

अर्थात्     A ∝ 1/A

दोनों नियमों को संयुक्त करने पर

              R ∝ L/A

             R = pL/A

जहाँ p (रो) एक स्थिरांक है, जिसे चालक का विशिष्ट प्रतिरोध या प्रतिरोधकता (Resistivity) कहते हैं। 

० इसका मात्रक ओम-मीटर होता है 

यदि 1 = 1 मीटर A = 1 मी० 2 तो समी० (1) से

R=p

अतः विशिष्ट प्रतिरोध को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकतख है

“किसी विद्युत अपघटनी चालक का विशिष्ट प्रतिरोध, 1 मीट लम्बे तथा 1 मीटर अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल वाले चालक के प्रतिरो (R) के बराबर होता है।”

(4) विशिष्ट चालकता (Specific Conductivity)

किसी विद्युत अपघटनी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को उसकी विशिष्ट चालकता कहते हैं। इसे  σ (Sigma ) या k (Kappa) से प्रदर्शित करते हैं।  

k = L/p             ……………..(i)

विशिष्ट प्रतिरोध की परिभाषा से

R = pL/A

p = RA/L           ………….…(ii)

R=p p= समी (1) तथा (2) से, 

k = L/RA 

k = C × L /A      …………….(3)  ( C = 1/R) 

अतः विशिष्ट चालकता को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता

यदि = 1 मीटर, A = 1 मीटर 2, तो समी० (3) से

K = C (चालकता)

“किसी विद्युत अपघटनी विलयन की विशिष्ट चालकता, 1 मीटर दूरी पर तथा 1 मीटर अनुप्रस्थ काट वाले दो इलेक्ट्रोडों के बीच रखे विलयन की चालकता के बराबर होती है।”

(5) आण्विक या मोलर चालकता (Molar Conductivity )

किसी विलयन में विलेय एक मोल विद्युत अपघट्य के मात्रा से उत्पन्न – आयनों की चालकता को विलयन की मोलर चालकता कहते हैं। इसे λm से प्रदर्शित करते हैं। इसे निम्न प्रकार से भी परिभाषित किया जा सकता है-

“किसी विद्युत अपघट्य विलयन की आण्विक चालकता, उसकी विशिष्ट चालकता (k) तथा आयतन (V) जिसमें विद्युत अपघट्य का 1 मोल घुला हो, के गुणनफल के बराबर होता है।

अतः  λm = k × V     …………..(1)

 यदि M ग्राम-मोल 1000 cm3 में विलेय हो, तो 1 ग्राम-मोल 1000/M  में विलेय होगा। cm

अतः    V = 1000/M सेमी³

समी० (2) से V का मान (1) में रखने पर,

λm = k × 1000/M  ……………(2)

जहाँ M विलयन की मोलरता है। मोलर चालकता की इकाई ओम⁻¹ मीटर² मोल⁻¹ होती है।

(6) तुल्यांकी चालकता (Equivalent Conductivity)

किसी विलयन में एक ग्राम तुल्यांकी विद्युत अपघट्य की मात्रा से उत्पन्न आयनों की चालकता को उस विलन की तुल्यांकी चालकता कहते हैं। इसे λeq से प्रदर्शित करते हैं।

“किसी विद्युत अपघट्य के विलयन की तुल्यांकी चालकता, उसकी विशिष्ट चालकता (K) तथा आयतन / के गुणनफल के बराबर होता है, जहाँ V मिली में विलयन का वह आयतन है जिसमें विद्युत अपघट्य का एक ग्राम तुल्यांक विलेय होता है। 

अतः λeq = k × V 

   λeq = k × 1000/N 

जहाँ N = नार्मलता है। =

तुल्यांकी चालकता की इकाई ohm⁻¹ cm² eq-1 होता है।

ऐसे विद्युत अपघट्य जिनका तुल्यांकी भार और अणुभार समान नहीं होते हैं, उनकी तुल्यांकी चालकता और मोलर चालकता में निम्न सम्बन्ध होता है- –

तुल्यांकी चालकता = मोलर चालकता / n

जहाँ      n = अणुभार / तुल्यांकी भार

सेल स्थिरांक (Cell Constant )- 

किसी सेल (Cell) के दो समानन्तर इलेक्ट्रोडों के बीच की दूरी (L) और किसी एक इलेक्ट्रोड के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के अनुपात को सेल का सेल स्थिरांक (Cell Constant) कहते हैं। इसे ϗ से प्रदर्शित करते हैं।

 अतः परिभाषा से, 

            ϗ = L/A          …………(i)

हम जानते हैं कि

        k = L/ RA           …………(ii)

समी० (1) तथा (2) से 

        k = ϗ/R  

           = ϗ × C          (C = 1/R) 

विशिष्ट चालकता = सेल स्थिरांक / प्रतिरोध

विशिष्ट चालकता = सेल स्थिरांक x चालकता

          k = ϗ × C

सेल स्थिरांक की इकाई m⁻¹ या प्रति मीटर होता है। 

कोलराउश का नियम (Kohlrausch’s Law)

कोलराउश के नियमानुसार, अनन्त तनुता पर किसी विद्युत अपघट्य की तुल्यांकी चालकता (λ∞eq) ऐनायन तथा कैटायन की आयनिक चालकता के योग के बराबर होती है। 

कोलराडश के नियम के अनुप्रयोग (Applications of Kohirausch’s Law)

कोलराडश नियम के प्रमुख अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं- 

(1) दुर्बल विद्युत अपघट्य के वियोजन की मात्रा ज्ञात करने में

विभिन्न तनुता तथा अनन्त तनुता पर किसी विद्युत अपघट्य की मोलर चालकता ज्ञात करके निम्न सूत्र की सहायता से किसी विद्युत अपघट्य की वियोजन की मात्रा (α )) ज्ञात कर लेते हैं- a =

   α = λc / λ∞

जहाँ λc = सान्द्रता C पर मोलर चालकता,

λ∞ = अनन्त तनुता पर मोलर चालकता ।

(2) जल के आयनिक गुणनफल ज्ञात करने में

कोलराडश के नियम की सहायता से जल का आयनिक गुणनफल ज्ञात किया जा सकता है। अनन्त तनुता पर H+ तथा OH- आयनों की आयनिक चालकताएँ क्रमश: 349.8 तथा 198.5 ohm⁻¹ cm² mol⁻¹ होती हैं। 

(3) दुर्बल विद्युत अपघट्य की मोलर चालकता ज्ञात करना 

कोलाराउश के नियम की सहायता से किसी दुर्बल विद्युत अपघट्य की अनंत तनुता पर मोलर चालकता ज्ञात कर सकते हैं।

विद्युत-अपघटन

(Electrolysis) 

वे पदार्थ जिनके जलीय विलयन अथवा उनके गलित अवस्था में विद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है, विद्युत अपघट्य कहलाते हैं और “विद्युत अपघट्य का विद्युत धारा द्वारा अपघटन विद्युत अपघटन कहलाता है।” 

विद्युत अपघटन के नियम (फैराडे के विद्युत अपघटन के नियम)

फैराडे के विद्युत अपघटन संबंधित नियम निम्न है। 

प्रथम नियम : 

विद्युत अपघटन अभिक्रिया में किसी इलेक्ट्रोड पर मुक्त (एकत्रित) हुए पदार्थ की मात्रा विद्युत अपघट्य के विलयन में प्रवाहित सम्पूर्ण आवेश (q = it) के अनुक्रमानुपाती होती है।

यदि i ऐम्पियर की धारा 1 सेकण्ड तक किसी विद्युत अपघट्य में प्रवाहित करने पर इलेक्ट्रोड पर मुक्त हुए पदार्थ की मान m. ग्राम हो,तो

                 m ∝ q

                 m∝ it

                m = Zit

जहाँ Z एक स्थिरांक (constant) है, जिसे मुक्त हुए तत्व का विद्युत रासायनिक तुल्यांक (electrochemical equivalent) कहते हैं। इसका मान भिन्न-भिन्न तत्त्वों के लिए भिन्न-भिन्न होता है। इसका मात्रक ग्राम/कूलाम होता है।

द्वितीय नियम : 

श्रेणी क्रम में जुड़े जब विभिन्न विद्युत अपघट्यों के विलयन में समान प्रबलता की विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है। तो इलेक्ट्रोडों पर मुक्त हुए पदार्थों की मात्रायें उनके रासायनिक तुल्यांक भारों (chemical equivalent weights) के अनुक्रमानुपाती होती हैं।

अर्थात m ∝ E

या    m / E = स्थिरांक

       m₁ / E₁ = m₂ / E₂

       m₁ / m₂ = E₁ / E₂

      Z₁lt / Z₂it = E₁ / E₂            [:: m = Zit]

       Z₁ / Z₂ = E₁ / E ₂ 

वैद्युत – अपघटन के उपयोग 

विद्युत अपघटन के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं

  • धातुओं को संक्षारण से बचाने के लिए
  • सजावटी सामान के रूप में
  • धातुओं का शोधन करने में
  • धातुओं के उत्पादन में
  • वैद्युत मुद्रा तथा ब्लॉक बनाने में
  • यौगिकों के निर्माण में

विद्युत रासायनिक सेल

(Electrochemical cells)

विद्युत रासायनिक सेल एक ऐसी युक्ति या व्यवस्था है जिसमें दो इलेक्ट्रोड एक ही विलन में अथवा किसी प्रकार एक दूसरे से जुड़े दो भिन्न बियलनो में रखे हुए होते हैं।

विद्युत रासायनिक सेल दो प्रकार के होते हैं

  • वैधुत अपघटनी सेल
  • गैलवेनी सेल या वोल्टीय सेल

मानक इलेक्ट्रोड विभव

आईयूपीएसी के अनुसार मानक अपचयन विभव को ही मानक इलेक्ट्रोड विभव कहा जाता है। इसे जानने से पहले निम्न पदों का ज्ञान होना आवश्यक है।

अर्ध – सेल या इलेक्ट्रोड (Half-Cell or Electrode) 

प्रत्येक सेल के दो भाग होते हैं जिन्हें इलेक्ट्रोड या अर्ध सेल कहते हैं, अथवा किसी धातु की छड़ को उसी धातु के आयन वाले विलयन में रखने से बना निकाय इलेक्ट्रोड या अर्ध सेल कहलाता है।

उदाहरण- Zn की छड़ को  ZnSO₄ के जलीय विलयन में डूबने से इलेक्ट्रोड या अर्ध सेल प्राप्त होता है। जिस इलेक्ट्रोड पर अपचयन क्रिया होती है उसे कैथोड करते हैं, जैसे डेनियल सेल में एनोड, जिंक इलेक्ट्रोड और कैथोड, कॉपर इलेक्ट्रोड होता है। जिंक इलेक्ट्रोड पर ऑक्सीकरण अभिक्रिया तथा कॉपर इलेक्ट्रोपॉप अपचयन क्रिया होती है।

Zn  →  Zn²⁺  +  2e⁻      (ऑक्सीकरण क्रिया)

Cu²⁺  +  2e⁻  →  Cu    (अपचयन क्रिया)

इलेक्ट्रोड विभव (Electrode Potential)

जब किसी धातु की छड़ उसके किसी लवण के विलयन में डूबोई जाती है तो धातु की छड़ विलयन के सापेक्ष धन आवेशित या ऋण आवेशित हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप धातु और विलयन के मध्य विभवांतर स्थापित हो जाता है। इस विभवांतर को धातु का इलेक्ट्रोड विभव कहते हैं।

उदाहरण : जब कापर की छड़ को कॉपर सल्फेट के विलयन में डुबोया जाता है तो कापर की छड़ विलयन के सापेक्ष धन आवेशित हो जाती है। जिसके परिणाम स्वरूप कॉपर धातु और कॉपर आयनों के बीच एक विभवांतर उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार उत्पन्न विभवांतर को कापर इलेक्ट्रोड का भी हो करते हैं।

इलेक्ट्रोड विभव को प्रभावित करने वाले कारक

इलेक्ट्रोड विभव तीन कारकों पर निर्भर करता है-

1.धातु इलेक्ट्रॉनों की प्रकृति पर 

सभी धातु की इलेक्ट्रॉन संरचना भिन्न-भिन्न होती है अतः सभी धातुओं की इलेक्ट्रॉन मुक्त करने की प्रवृत्ति भिन्न-भिन्न होती है। वेद हाथ में जो अधिक क्रियाशील होते हैं उनमें इलेक्ट्रॉन मुक्त करने की प्रवृत्ति अधिक होती है।

2.विलयन में उपस्थित धातु आयन की सांद्रता पर

इलेक्ट्रोड विभव विलन वापस धातुओं की सुंदरता पर भी निर्भर करता है।

3.ताप पर

किसी धातु का इलेक्ट्रोड विभव धातु की प्रकृति विलन में उपस्थित उस धातु के गानों की सांद्रता और ताप पर निर्भर करता है। अर्थात इलेक्ट्रोड विभव विलन का ताप बढ़ने और घटने का अनुसार बदलता है।

मानक इलेक्ट्रोड विभव (Standard Electrode Potential) 

किसी धातु इलेक्ट्रोड को उसी धातु के लवण के एक मोलर सांद्रण वाले विलयन में 25 डिग्री सेल्सियस डुबोने पर धातु इलेक्ट्रोड और विलयन के मध्य विभवांतर उत्पन्न होता है। उसे धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव कहते हैं। इसे E⁰ से प्रदर्शित करते हैं।

मानक इलेक्ट्रोड (E⁰) विभव और इलेक्ट्रोड विभव (E) में संबंध- 

माना किसी इलेक्ट्रोड पर निम्न अभिक्रिया हो रही है

M    →   Mⁿ⁺    +  ne⁻ 

नर्नस्ट के अनुसार, मानक इलेक्ट्रोड विभव और इलेक्ट्रोड विभव में निम्नलिखित संबंध होता है

E  = E⁰ + (2.30RT) log₁₀ [Mⁿ⁺] / nF…..(1)

जहां….

E = इलेक्ट्रोड विभव

E⁰ = मानक इलेक्ट्रोड विभव

R = गैसीय नियतांक = 8.312 जूल 

T = परम ताप 

F = फैराडे = 96500 कूलाम

n = इलेक्ट्रोड अभिक्रिया में भाग लेने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या और [Mⁿ⁺]धातु आयनों की सांद्रता है।

समीकरण 1 को निम्न प्रकार से लिख सकते हैं।

E  = E⁰ + (0.0591) log₁₀ [Mⁿ⁺] / n ……..(2)

अतः समीकरण 2 से स्पष्ट है कि स्थिर ताप पर किसी धातु का इलेक्ट्रोड विभव धातु आयन की सांद्रता पर निर्भर करती है। 

यदि [Mⁿ⁺] = 1 मौला अर्थात आइनॉक्स अंदर तक आए हो तो

E  = E⁰ + (0.0591) log₁₀ [1] / n          [log₁₀ 1 = 0]

E  = E⁰

अर्थात जब धातु आयनो की सांद्रता [Mⁿ⁺] एक मोलर होती है तो E का मान E⁰ के बराबर होता है। किसी आक्सीकरण-अपचयन इलेक्ट्रोड (रेडाक्स इलेक्ट्रोड) के लिए, 25 डिग्री सेल्सियस पर

Ox             +          ne⁻    →   Red 

(आक्सीकारक)                      (अपचायक)

इलेक्ट्रोड विभव,

E  = E⁰ + (0.0591/n) x log₁₀ [OX/Red]

E  = E⁰ + (0.0591/n) x log₁₀ [Reactant s/Products] 

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड 

(Standard Hydrogen Electrode)

धातु इलेक्ट्रोडों की भाँति हाइड्रोजन का इलेक्ट्रोड H नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि हाइड्रोजन ठोस पदार्थ नहीं है। मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड बनाने के लिये प्लैटिनयम धातु की एक प्लेट लेते हैं। इस प्लेट पर प्लैटिनम ब्लैक (प्लैटिनयम का बारीक चूर्ण, जो काले रंग का होता है) की पर्त जमा देते हैं। इस इलेक्ट्रोड को एक मोलर (1 M) सान्द्रता वाले हाइड्रोजन आयन (H+ ) के विलयन (1M-HCl) में लटकाकर 25°C और एक वायुमण्डलीय दाब पर हाइड्रोजन गैस (H2) प्रवाहित करते हैं तो प्लैटिनम ब्लैक हाइड्रोजन गैस को अधिशोषित कर लेता है। हाइड्रोजन अधिशोषित प्लैटिनम की सतह उसी प्रकार कार्य करती है जिस प्रकार हाइड्रोजन गैस ठोस होने पर कार्य करती है। इस प्रकार प्लैटिनम इलेक्ट्रोड पर अधिशोषित हाइड्रोजन गैस तथा विलयन में उपस्थित हाइड्रोजन आयनों में साम्वास्था स्थापित हो जाती है।

2H⁺       +      2e⁻   →   H₂

(विलयन)                  गैस

[H⁺]= 1 मोलर         (1 वायु)

मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड को निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं- H₂ (1 वायुमण्डल), Pt[H⁺ (1 मोलर)

स्वेच्छा से इसका इलेक्ट्रोड विभव शून्य वोल्ट (0.0000 वोल्ट) मान लिया गया है।

सेल का विद्युत वाहक बल 

एकांक आवेश को सेल सहित पूरे परिपथ में प्रवाहित करने पर सेल द्वारा दी गई ऊर्जा को सेल का विद्युत वाहक बल कहते हैं। विद्युत वाहक बल सेल में प्रयुक्त इलेक्ट्रोड तथा विद्युत अपघट्य की प्रकृति पर निर्भर करता है। 

                E = w/q

विद्युत वाहक बल का मात्रक जूल प्रति कुलाम या बोल्ट होता है। 

किसी सेल के विद्युत वाहक बल कोने में सूत्र द्वारा ज्ञात करते हैं-

E⁰cell  = E⁰ cathode  –  E⁰anode 

प्रश्न. निम्न अभिक्रिया वाले सेल के विद्युत वाहक बल की गणना कीजिए।

Zn(s)  +  2Ag⁺ (eq)  →   Zn²⁺ (eq)  +  2Ag(s) 

जबकि E⁰ zn²⁺lzn तथा   E⁰Ag⁺lAg के मान क्रमश:  -0.76 तथा +0.80 वोल्ट है।

हल : E⁰cell  = E⁰ cathode  –  E⁰anode 

                   = 0.80 -(-0.76) 

                   = 0.80 + 0.76

                   = 1.56 वोल्ट

 

मानक इलेक्ट्रोड विभव के अनुप्रयोग

(Application of Standard Electrode Potential)

विद्युत रासायनिक श्रेणी (Electrochemical Series)

यदि विभिन्न धातुओं को उनके मानक इलेक्ट्रोड विभव के बढ़ते हुए क्रम में रखा जाए तो एक श्रेणी प्राप्त होती है जिसे विद्युत रसायनिक श्रेणी आते हैं। हाइड्रोजन, जिसका मानक इलेक्ट्रोड विभव 0 है, श्रेणी के मध्य में रखा गया।

विद्युत रासायनिक श्रेणी 25 डिग्री सेल्सियस पर धातु का मानक इलेक्ट्रोड विभव (मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के सापेक्ष)

इलेक्ट्रोड अभिक्रिया या अर्ध सेल अभिक्रिया मानक इलेक्ट्रोड विभव या मानक अपचयन विभव
Li⁺    +   e⁻     → Li

K⁺   +     e⁻   →  K

Ba²⁺  +   2e⁻    → Ba

Sr²⁺   +   2e⁻   →   Sr

Ca²⁺   +  2e⁻  →   Ca

Na²⁺    +  e⁻ →    Na

Mg²⁺   +  2e⁻  →   Mg 

Al³⁺  +   3e⁻    →   Al

Mn²⁺  +   2e⁻  →   Mn

Zn²⁺  +   2e⁻  →   Zn 

Cr³⁺  +  3e⁻    →   Cr

Fe²⁺    +   2e⁻ →   Fe

Cd²⁺   +   2e⁻ →   Cd

Co²⁺  +   2e⁻  →   Co

Ni²⁺      +  2e⁻ →   Ni

Sn²⁺   +  2e⁻  →   Sn 

Pb²⁺   +  2e⁻  →   Pb 

2H⁺     +  2e⁻ →    H₂

Cu²⁺    + 2e⁻ →    Cu

Hg²⁺   +  2e⁻ →   Hg

Ag⁺   +   e⁻  →   Ag 

Pt²⁺   +   2e⁻ →   Pt

Au³⁺  +    3e⁻  →   Au 

-3.04

-2.92

-2.90

-2.89

-2.87

-2.71

-2.37

-1.66

-1.18

-0.76

-0.74

-0.44

0.40

-0.27

-0.25

-0.13

-0.12

0.0

+0.34

+0.79

+0.80

+1.20

+1.50

 

विद्युत रासायनिक श्रेणी के मुख्य लक्षण

1.विद्युत रासायनिक श्रेणी में जब इलेक्ट्रोड अभिक्रियये ऑक्सीकरण की होती है तो इलेक्ट्रोड विभव का ऑक्सीकरण विभव कहते हैं और जब अभिक्रियाये अपचयन की होती है तो इलेक्ट्रोड को अपचयन विभव कहते हैं।

2.जिस धातु का मानक अपचयन विभव अधिक ऋण आत्मक होता है उसमें इलेक्ट्रान त्यागने की प्रवृत्ति अधिक होती हैं। इस प्रकार के धातु अपेक्षाकृत अधिक क्रियाशील या अधिक सक्रिय होती हैं। अता श्रेणी में धातु की क्रियाशीलता ऊपर से नीचे की ओर घटती है।

3.वह धातु जो हाइड्रोजन से दुर्बल अपचायक है उन्हें श्रेणी में हाइड्रोजन से नीचे रखा गया है तथा उनका मानक अपचयन विभव धनात्मक है।

4.जिस अपचायक का मानक इलेक्ट्रोड विभव अधिक ऋण आत्मक होता है वह अधिक प्रबल अपचायक होता है।

5.वह धातु जो विद्युत रासायनिक श्रेणी में हाइड्रोजन से उपर स्थित है हाइड्रोजन से अधिक प्रबल अपचायक है तथा उनका मानक अपचयन विभव ऋणात्मक है।

6.जिस ऑक्सीकारक का मानक अपचयन विभव अधिक धनात्मक होता है वह अधिक प्रबल ऑक्सीकारक होता है अर्थात उस में इलेक्ट्रॉन ग्रहण की प्रवृत्ति अपेक्षाकृत अधिक होती है।

7.विद्युत रासायनिक श्रेणी में प्रत्येक धातु अपने से नीचे स्थित धातुओं को उनके लवणों के जलीय विलयन से विस्थापित कर देती हैं क्योंकि श्रेणी में धातु की क्रियाशीलता ऊपर से नीचे की ओर घटती है।

8.विद्युत रासायनिक श्रेणी में हाइड्रोजन से उपस्थित सभी धातुएं तनु अम्ल से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन मुक्त करते हैं जबकि हाइड्रोजन से नीचे वाली धातु अम्ल से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन मुक्त नहीं करती हैं।

9. जिस अधातु का मानक अपचयन विभव अधिक धनात्मक होता है। उसमें इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति अधिक होती हैं और व अधातु अधिक क्रियाशील होती हैं जैसे हैलोजन तत्व की क्रियाशीलता।

10.विद्युत रासायनिक श्रेणी में प्रत्येक अधातु अपने से उपर स्थित अधातुओं उनके अलावा के विलयन से विस्थापित कर देती हैं।

विद्युत रासायनिक श्रेणी के उपयोग

विद्युत रासायनिक श्रेणी के नियम उपयोग हैं

  1. विद्युत रासायनिक श्रेणी का उपयोग धातु निष्कर्षण में किया जाता है।
  2. धातु की क्रियाशीलता यह सक्रियता ज्ञात करने में
  3. कोई ऑक्सीकरण अपचयन क्रिया संभव अथवा नहीं इसकी पता लगाने में
  4. धातुओं द्वारा अम्ल से हाइड्रोजन गैस के मुक्त कराने में
  5. किसी गैलेनिक सेल के बिल्ट वाहक बल की गणना करने में
  6. विस्थापन अभिक्रिया में
  7. धातुओं की अपचायक क्षमता ज्ञात करने में
  8. अधातुओ की ऑक्सीकारक क्षमता पता करने में
  9. धातु ऑक्साइड का हाइड्रोजन द्वारा अपचयन करने में

ननर्स्ट समीकरण (Nernst Equation) 

किसी धातु इलेक्ट्रोड का विभव बिलियन की सांद्रता तथा ताप से किस प्रकार प्रभावित होती है इसका अध्ययन करके नेनर्स्ट नामक वैज्ञानिक ने एक समीकरण स्थापित किया जिसे नेनर्स्ट समीकरण कहते हैं।

मानक इलेक्ट्रोड अभिक्रिया निम्न प्रकार होती है

        M    →   Mⁿ⁺    +  ne⁻ 

नेनर्स्ट के अनुसार, इस अभिक्रिया के लिए किसी भी सुंदरता पर मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के सापेक्ष मापा गया इलेक्ट्रोड विभव निम्न प्रकार निरूपित किया जा सकता है।

E  = E⁰ + (2.30RT) log₁₀ [Mⁿ⁺] / nF

जहां….

E = इलेक्ट्रोड विभव

E⁰ = मानक इलेक्ट्रोड विभव

R = गैसीय नियतांक = 8.312 जूल 

T = परम ताप 

F = फैराडे = 96500 कूलाम

n = इलेक्ट्रोड अभिक्रिया में भाग लेने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या और [Mⁿ⁺]धातु आयनों की सांद्रता है।

समीकरण 1 को निम्न प्रकार से लिख सकते हैं।

E  = E⁰ + (0.0591) log₁₀ [Mⁿ⁺] / n 

विद्युत रासायनिक सेल अभिक्रिया की गिफ्ट ऊर्जा या मुक्त ऊर्जा

विद्युत कार्य किसी सेल के विद्युत विभव तथा बाय परिपथ में प्रवाहित आवेश के गुणनफल के बराबर होता है।

अर्थात     W (अधिकतम)  = nFEcell ……….(1)

अता उस्मा गतिकी के अनुसार मुक्त ऊर्जा या गिब्स ऊर्जा में परिवर्तन (कमी), (∆G ) किए गए अधिकतम कार्य के बराबर होता है

              W (अधिकतम)  =  ∆G  ……..(2)

समीकरण (1) व समीकरण (2) से

                 ∆G = -nFEcell 

मानक परिस्थितियों में    

                  ∆G⁰ = -nFE⁰cell 

परीक्षा उपयोगी प्रश्न__________

प्रश्न-1. तनुता बढ़ाने पर चालकता पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर– चालकता घट जाती है

प्रश्न-2. द्वितीयक सेल क्या है?

उत्तर- वह सेल जो पुन: रिचार्ज की जा सकती है द्वितीयक सेल कहलाती है।

प्रश्न-3. विद्युत अपघटन क्या होता है?

उत्तर- वह प्रक्रिया जिसमें विद्युत अपघट्य की जलीय विलयन अथवा गलित अवस्था में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर विद्युत अपघट्य का अपघटन हो जाता है विद्युत अपघटन कहलाता है।

प्रश्न-4. क्षारीय माध्यम में लोहे पर जंग लगना किस प्रकार रुक जाता है?

उत्तर- लोहे पर जंग हाइड्रोजन आयनो की उपस्थिति में लगता है। जब माध्यम क्षारीय होता है तो हाइड्रोजन आयन उदासीन हो जाते हैं जिससे लोहे पर जंग लगना रुक जाते हैं।

प्रश्न-5. संक्षारण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?

उत्तर- संक्षारण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं- 

(1) धातुओं की प्रकृति-अधिक क्रियाशील धातुएँ जल्दी संक्षारित होती हैं। उदाहरण के लिए, कॉपर, आयरन आदि में संक्षारण शीघ्रता से होता

(2) धातुओं में अशुद्धियाँ – अशुद्धियों की उपस्थिति में धातुएँ गैल्वेनी सेल बना लेती हैं, जिसके कारण संक्षारण तीव्र गति से होता है। जैसे- शुद्ध आयरन में जंग नहीं लगती, जबकि अशुद्ध आयरन में तीव्रता से जंग लगती है।

(3) विद्युत अपघट्य की प्रकृति – विद्युत अपघट्यों की उपस्थिति में संक्षारण की प्रक्रिया तीव्रता से होती है; जैसे—- समुद्री जल में अनेक प्रकार के विद्युत-अपघट्य (लवण) होते हैं, जिसके कारण धातु की सतह पर विद्युत रासायनिक सेल बन जाता है, जिससे संक्षारण तीव्रता से होता है।

(4) वातावरण – धातुओं के आस-पास के वातावरण में उपस्थित ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), SO2, नमी आदि की उपस्थिति में संक्षारण तीव्रता से होती है।

(5) धातुओं की विकृति – धातुओं की खुरदरी या मुड़ी हुई सतह पर समतल की अपेक्षा अधिक संक्षारण होता है। यही कारण है कि डिब्बों के किनारे जल्दी टूट जाते हैं।

 

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