Class 12th Chemistry Notes Pdf in Hindi – कक्षा 12वी रसायन विज्ञान अध्याय-2 नोट्स पीडीएफ 

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Solution Class 12th Notes Pdf in Hindi – 12th Solution Handwritten Notes Pdf – कक्षा 12वी रसायन विज्ञान अध्याय-2 नोट्स पीडीएफ 

इस पोस्ट Class 12th Chemistry Notes Pdf in Hindi के अंतर्गत, कक्षा 12 वीं रसायन विज्ञान अध्याय-2 विलयन का संपूर्ण नोट्स दिया गया है। जिसे आप ऑनलाइन के माध्यम से पढ़ सकते हैं। यदि आपको कहीं भी किसी टॉपिक्स में प्रॉब्लम होती है तो आप हमें कमेंट कर पूछ सकते हैं। Class 12th Chemistry Notes Pdf in Hindi

Class 12th Chemistry Notes Pdf in Hindi – कक्षा 12वी रसायन विज्ञान अध्याय-2 नोट्स पीडीएफ

 

विलयन (Solutions)

दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगी मिश्रण को विलयन कहते हैं।

उदाहरण- जल में थोड़ी चीनी डालकर उसे हिलाने पर चीनी जल में अदृश्य हो जाती है अर्थात विलीन हो जाती है तथा चीनी और जल का एक पारदर्शक समांगी मिश्रण, अर्थात विलयन बन जाता है।

 

विलायक और विलेय 

(Solvent and Solute)

विलेन के जिस घटक की मूल भौतिक अवस्था विलयन जैसी होती है उसे विलायक कहते हैं और दूसरे घटक अर्थात विलीन हुए पदार्थ को विलेय कहते हैं।

उदाहरण- चीनी के जलीय विलयन में जल विलायक और चीनी विलेय हैं। 

 

विलयन के प्रकार

(Types of Solutions)

विलायक और विलेय की भौतिक अवस्थाओं के अनुसार  9 प्रकार के विलयन संभव है।

  • ठोस का ठोस में
  • ठोस का द्रव में
  • ठोस का गैस में
  • द्रव का ठोस में
  •  द्रव का द्रव में
  • द्रव का गैस में
  • गैस का ठोस में
  • गैस का द्रव में
  • गैस का गैस में

 

विलयन की भौतिक अवस्था ठोस द्रव या गैस हो सकती है। जैसे- जल में नमक का विलयन द्रव विलयन है। वायु एक गैसीय विलन है।

 

तनु विलयन एवं सांद्र विलयन
(Dilute solution and concentrated solution)

 जिस विलयन में विलेय की सांद्रता कम होती है उसे तनु विलयन कहते हैं विलयन में विलेय की सांद्रता अधिक होने पर उसे सांद्र विलयन कहते हैं। 

 

संतृप्त विलयन (Saturated Solution)

 किसी ताप पर, जल की एक निश्चित मात्रा में थोड़ी चीनी डालकर उसे हिलाने पर चीनी जल में विलीन हो जाती है। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में चीनी को जल में डालकर विलन को हिलाते रहने पर चीनी धीरे धीरे चाल में घूमती रहती है और अंत में एक ऐसी अवस्था आ जाती है जब चीनी का घुलना रुक जाता है और ठोस चीनी विलयन के नीचे पेंदी में बैठने लगती है। इस अवस्था में विलेन संतृप्त विलयन कहलाता है।

 

अतिसंतृप्त विलयन (Supersaturated Solution)

 निश्चित ताप पर, किसी विलयन को संतृप्त करने के लिए आवश्यक मात्रा से अधिक पदार्थ की मात्रा जिस विलयन में उपस्थित होती है उस विलयन को अतिसंतृप्त विलयन कहते हैं। 

उदाहरण- सोडियम थायोसल्फेट के क्रिस्टल को सावधानी से गर्म करने पर सोडियम थायोसल्फेट अपने क्रिस्टलन जल में घुल कर अतिसंतृप्त विलयन बना लेता है।

 

विलेयता (Solubility)

किसी विलायक की एक निश्चित मात्रा में, निश्चित ताप पर, किसी पदार्थ की एक निश्चित मात्रा विलीन होती है। निशिता पर किसी पदार्थ के संतृप्त विलयन की सांद्रता को उसकी विलेयता कहते हैं।

किसी पदार्थ की वह मात्र जो निश्चित ताप पर 100 ग्राम विलायक को संतृप्त करने के लिए आवश्यक होती पदार्थ की विलेयता कहलाती है।

 

विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक

विलेयता को प्रभावित करने वाले निम्न कारक है-

1.ताप – साधारण पदार्थों की विलेयता बढ़ाने से घटती है जबकि गैसों की विलेयता बढ़ाने से घटती है।

2.विलेय और विलायक की प्रकृति -विलायक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं :

  • ध्रुवी विलायक (polar solvent)
  • अध्रुवी विलायक (non-polar solvent)। 

आयनिक व ध्रुवी (polar) पदार्थ ध्रुवी विलायकों में घुलते हैं, जबकि अध्रुवी (non-polar) पदार्थ अध्रुवी या क्षीण ध्रुवी विलायकों में घुलते हैं। 

उदाहरण के लिए, सोडियम क्लोराइड व अन्य आयनिक पदार्थ जल में घुलते हैं, क्योंकि जल ध्रुवी विलायक है। 

3.विलेय के कणों का आकार : किसी क्रिस्टलीय ठोस के छोटे कण बड़े कणों की अपेक्षाकृत जल्दी घुलते हैं।

4.सम-आयन प्रभाव : विलयन में सम-आयन (common ion) की उपस्थिति से साधारणतः अल्प विलेय लवणों की विलेयता घट जाती है। 

विलयन की सांद्रता व्यक्त करना

विलयन के यूनिट आयतन या यूनिट मात्रा में विलीन विलेय की मात्रा विलयन के सान्द्रता कहलाते हैं।

1.भार प्रतिशतता (w/w) : 

100ग्राम विलयन में उपस्थित विलेय की ग्रामों की संख्या विलेन के भार प्रतिशतता कहलाती है। 

भार प्रतिशतता = विलेय का भार (ग्राम में) × 100 / विलयन का भार (ग्राम में) 

उदाहरण- सोडियम के 10% जलीय विलयन से यह अभिप्राय है कि 100 ग्राम विलयन में 10 ग्राम सोडियम क्लोराइड और 90 ग्राम जल उपस्थित है।

2.आयतन प्रतिशतता (v/v) : 

100 मिलीलीटर विलयन में उपस्थित विलेय के मिलीलीटरो की संख्या विलयन की आयतन प्रतिशतता कहलाती है।

आयतन प्रतिशतता = विलेय का आयतन (mL में) × 100 / विलयन का आयतन (mL में)

उदाहरण- एल्कोहल के 10% जलीय विलयन से यह अभिप्राय है कि 100 मिलीलीटर विलयन में 25 मिलीलीटर एल्कोहल और 75 मिलीलीटर जल उपस्थित हैं।

3.भार – आतन प्रतिशतता (w/v) : 

विलयन के 100 मिलीलीटर में विलीन विलय के ग्रामों की संख्या विलयन की भार आतन प्रतिशतता कहलाती है। 

उदाहरण- 10% ग्लूकोस विलयन भार – आतन(w/v)  से यह अभिप्राय है कि 100 मिलीलीटर विलयन में 10 ग्राम ग्लूकोस उपस्थित हैं।

4.विलयन की नर्मलता (Normality of solution) : 

विलयन के 1 लीटर में विलीन विलय के तुल्यांकों की संख्या विलयन की नर्मलता कहलाते हैं।

विलयन की नर्मलता = विलेय के तुल्यांकों की संख्या / विलयन का आयतन (लीटर में)

विलेय के तुल्यांकों की संख्या = विलेय का भार / विलेय का तुल्यांकी भार 

किसी पदार्थ के विलयन के ग्राम प्रति लीटर में सांद्रता और निर्मलता में संबंध- 

विलयन की सांद्रता (ग्राम/लीटर) = विलयन की नर्मलता × पदार्थ का तुल्यांकी भार

प्रश्न : 4 ग्राम सोडियम हाइड्रोक्साइड को जल में घोलकर विलयन के कुल आयतन 250 मिलीलीटर कर दिया गया। विलयन की नर्मलता ज्ञात कीजिए। 

हल-  दिया है, 

NaOH का भार = 4 ग्राम

NaOH का तुल्यांकी भार = NaOH का अणु भार = 40 

विलेय के तुल्यांकों की संख्या = विलेय का भार / विलेय का तुल्यांकी भार 

विलेय के तुल्यांकों की संख्या = 4/40 

                                     = 0.1 

NaOH विलयन का आयतन = 250/1000

                                     = 0.25 लीटर 

विलयन की नर्मलता = विलेय के तुल्यांकों की संख्या / विलयन का आयतन (लीटर में)

विलयन की नर्मलता = 0.1/0.25 

                          = 0.4 तुल्यांक/लीटर

5.विलयन की मोलरता(Molarity of Solution)

विलयन के एक लीटर में विलीन विलेय (solute) के मोलों की संख्या विलयन की मोलरता कहलाती है।

विलयन की मोलरता = विलेय के मोलों की संख्या / विलयन का आयतन (लीटर में)

विलेय के मोलों की संख्या = विलेय का भार (ग्राम में) / विलेय का अणु भार

विलेन की ग्राम प्रति लीटर में सान्द्रता और मोलरता में संबंध- 

विलयन की ग्राम प्रति लीटर में सांद्रता = विलयन की मोलरता × विलेय का अणुभार

प्रश्न : 20.6 ग्राम NaBr को 50 मिली जल में खोला गया है। प्राप्त विलयन की मोलरता क्या होगी? (Na = 23, Br = 80) 

हल- दिया है, 

NaBr का भार = 20.6 ग्राम

NaBr का अणु भार = Na का अणुभार + Br का अणुभार

                          = 23+80 

                          = 103

NaBr के मोलों की संख्या = 20.6/103

                                  = 0.2

NaBr विलयन का आयतन = 500/1000 

                                   = 0.50 लीटर

NaBr विलयन की मोलरता = 0.2/0.50

                                   = 0.4 मोल/लीटर

6.विलयन की मोललता (Molality of Solution)

एक किलोग्राम विलायक में विलीन विलय के मोलो की संख्या को विलयन की मोललता कहलाती हैं।

विलयन की मोलरता = विलेय की मोलो की संख्या ×1000 / विलायक का भार (ग्राम में)

विलेय की मोलो की संख्या = विलेय का भार / विलेय का अणुभार

नोट- मोललता ताप पर निर्भर नहीं करती है क्योंकि द्रव्यमान ताप पर निर्भर नहीं करता है। 

प्रश्न- एक लवण का अणु भार 30 है। लड़की 3 ग्राम मात्रा 250 ग्राम में जल में विलीन की गई। विलयन की मोलरता ज्ञात कीजिए।

हल- दिया है, 

 लवण का भार = 3 ग्राम

लवण का अणुभार = 30

जल का भार = 250 ग्राम

लवण के मोलो की संख्या = 3/30

                                = 0.1

विलयन की मोललता = 0.1×1000/250

                           = 0.4 मोल/किलोग्राम

7.मोल प्रभाज (Mole Fraction) : 

विलयन के किसी घटक के मोलो की संख्या और विलयन में उपस्थित उसके सभी घटकों के मोलो की कुल संख्या के अनुपात को उस घटक का मोल प्रभाज कहते हैं।

यदि किसी द्विअंगी विलयन में विलय की n मोल और विलायक के N मोल उपस्थित है तो विलयन में,

विलेय का मोल प्रभाज = विलेय के मोलो की संख्या / विलेय के मोलो की संख्या + विलायक के मोलो की संख्या

विलेय का मोल प्रभाज = n / n + N 

विलायक का मोल प्रभाज = विलायक के मोलो की संख्या / विलेय के मोलो की संख्या + विलायक के मोलो की संख्या

विलायक का मोल प्रभाज =  N / n + N 

नोट- किसी विलयन में उपस्थित विभिन्न पदार्थों के मोल प्रभाजो का कुल योग 1 होता है।

तनु विलेनो के गुण

(Properties of Dilute Solution)

द्रव विलायकों में अवाष्पशील विलेयों के तनु विलयनो के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं – 

  1. परासरण एवं परासरण दाब
  2. वाष्प दाब का अवनमन
  3. क्वथनांक का उन्नयन
  4. हिमांक का अवनमन
विलयन के अणुसंख्य गुण (Colligative Properties of Solution)

विलयन के जो भौतिक गुण विलयन के निश्चित आयतन या भार में उपस्थित विलेय के कणों (अणुओ या आयनो) की संख्या पर या विलयन में विलय के मोल प्रभाज पर निर्भर करते है,अणुसंख्य गुण कहलाते हैं।

  • विलयनो के अणुसंख्य गुण कणों की प्रकृति, उनकी संरचना या उनके संघटन पर निर्भर नहीं करते हैं।
  • पररसरण दाब, वाष्प दाब का अवनमन, क्वथनांक का उन्नयन और हिमांग का अवनमन विलन ओके और उसके गुण है।
परासरण एवं परासरण दाब (Osmosis and Osmotic Pressure)

परासरण : विलायक के अणुओं का अर्धपारगम्य झिल्ली में होकर शुद्ध विलायक से विलयन की ओर या तनु विलयन से सांद्र विलयन की ओर स्वत: प्रवाह परासरण कहलाता है।

परासरण दाब : अर्धपारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक से पृथक किए गए विलयन में विलायक के प्रवेश को रोकने के लिए विलयन पर लगाया गया आवश्यक अतिरिक्त दाब विलयन का परासरण दाब कहलाता है।

परासरण दाब के नियम (Laws of Osmotic Presure)

फेफर (W. F. P. Pfeffer, 1877) द्वारा तनु विलयनों के परासरण दाब पर किए गए प्रयोगों के परिणामों के आधार पर वान्ट हॉफ* (J. H. van’t Hoff, 1887) ने परासरण दाब के नियमों की रचना की। वान्ट हॉफ ने बताया कि गैसों और वैद्युतअनपघट्यों के तनु विलयनों के गुणों में बहुत समानता होती है, तथा वैद्युत अपघट्यों के त विलयनों के नियम गैसीय नियमों से मिलते-जुलते हैं। वैद्युत अपघट्यों के लिए परासरण दाब के नियम निम्नलिखित हैं।

1.बॉयल – वान्ट हॉफ नियम (Boyle-van’t Hoff Law)

बॉयल – वान्ट हॉफ नियम गैसों के बॉयल नियम से मिलता-जुलता है। बॉयल – वान्ट हॉफ नियम के अनुसार, “स्थिर ताप पर, किसी विलयन का परासरण दाब P, विलयन की सान्द्रता C के समानुपाती होता है।

P ∝ C

या,

 P= kC 

(जहाँ, k स्थिरांक है।)

यदि विलयन की सान्द्रता C, एक मोल प्रति लीटर है तो,

PV = k (स्थिरांक)

2.चार्ल्स वान्ट हॉफ नियम (Charle’s-van’t Hoff Law)

चार्ल्स वान्ट हॉफ नियम गैसों के चार्ल्स नियम से मिलता-जुलता है। इस नियम के अनुसार,

“स्थिर सान्द्रता पर किसी विलयन का परासरण दाब P, परम ताप T के समानुपाती होता है।”

             P ∝ T (स्थिर सान्द्रता पर )

या,         P=k’T   (जहाँ, k’ स्थिरांक हैं।)

तनु विलयनों की वान्ट हॉफ समीकरण (van’t Hoff Equation for Dilute Solutions)

वान्ट हॉफ समीकरण विलयन के परासरण दाब, आयतन (या सान्द्रता) और ताप में सम्बन्ध व्यक्त करती है। बॉयल-वान्ट हॉफ नियम के अनुसार,

PV = k (स्थिरांक)                 (स्थिर ताप पर)…..1

चार्ल्स वान्ट हॉफ नियम के अनुसार,

P/T = k’ (स्थिरांक)       (स्थिर सान्द्रता पर )   …(2)

समीकरण (1) और (2) को मिलाने पर,

PV = RT    (विलेय के 1 मोल के लिए)        …(3)

यदि विलयन के V लीटर में विलेय (solute) के n मोल उपस्थित हैं तो,

PV = nRT    (विलेय के n मोल के लिए)    …..(4)

समीकरण (4) को तनु विलयनों की वान्ट हॉफ समीकरण कहते हैं। यह समीकरण गैस समीकरण PV=nRT जैसी है। समीकरण (4) में R एक स्थिरांक है जिसे विलयन स्थिरांक (solution constant )कहते हैं। विलयन स्थिरांक R का मान 0.082 लीटर वायुमण्डल प्रति डिग्री प्रति मोल है। 

विलयनों की वान्ट हॉफ समीकरण की सीमाएँ

(1) अवाष्पशील (non-volatile) वैद्युतअनपघट्यों (non-electrolytes) के तनु विलयन साधारण ताप की परिस्थितियों में वान्ट हॉफ समीकरण का पालन करते हैं।

(2) वाष्पशील (volatile) पदार्थों के विलयन तथा सान्द्र विलयन वान्ट हॉफ समीकरण से विचलित होते हैं। 

(3) वैद्युत अपघट्यों (electrolytes) के विलयन वान्ट हॉफ समीकरण से विचलन प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि वियोजन (dissociation) के कारण उनके विलयन में कणों की संख्या सामान्य संख्या से अधिक हो जाती है।

(4) जो पदार्थ विलयन में संगुणित (associate) होते हैं उनके विलयन वान्ट हॉफ समीकरण से विचलन प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि संगुणन (association) के कारण उनके विलयन में कणों की संख्या सामान्य संख्या से कम हो जाती है।

उदाहरण 1. 0.5% ग्लूकोस ( अणु भार = 180 ) विलयन का परासरण दाब 18°C पर निकालिए। घोल स्थिरांक का मान 0.082 litre atm K⁻¹ mol⁻¹ है।

हल- :  दिया है – R = 0.082 litre atm K⁻¹ mol⁻¹

m = 180 ,  w = 0.5 ग्राम 

V = 100/1000 = 0.1 लीटर 

T = 18 + 273 = 291K

P = ज्ञात करना है,

विलयनों की वान्ट हॉफ समीकरण के अनुसार,

PV = nRT

PV = (w/m)RT                  ………..(1)

P= (0.5/180 x 0.1) x 0.082 × 291 = 0.66 वायुमण्डल

अतः ग्लूकोस विलयन का परासरण दाब, P = 0.66 वायुमण्डल

द्रव का वाष्प दाब (Vapour Pressure of Liquids)

किसी ताप पर द्रव और उसकी वाष्प के मध्य साम्य की अवस्था में वाष्प का दाब द्रव का वाष्प दाब कहलाता है।

अवाष्पशील विलेयों द्वारा वाष्प दाब का अवनमन

यदि किसी ताप पर शुद्ध विलायक का वाष्प दाब P⁰ और विलयन का वाष्प दाब Ps है तो (P⁰ – Ps) वाष्प दाब का अवनमन और (P⁰ – Ps)/P⁰ वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन कहलाता है।

राउल्ट का नियम (Raoult’s Law)

राउल्ट (F. M. Raoult, 1887) ने अवाष्पशील पदार्थों के द्रव विलायकों में विलयनों के वाष्प दाब अवनमन पर अनेक प्रयोग किए और उनसे प्राप्त परिणामों के आधार पर एक नियम की रचना की जिसे राउल्ट का नियम कहते हैं।

राउल्ट के नियम के अनुसार,

वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन विलयन में विलेय के मोल प्रभाज के बराबर होता है।

यदि समान ताप पर शुद्ध विलायक और विलयन के वाष्प दाब क्रमश: P° और Ps, हैं, और विलयन में विलेय और विलायक के मोलों की संख्याएँ क्रमशः n और N हैं तो, 

राउल्ट के नियम के अनुसार, 

(P⁰ – Ps)/P⁰ = n / (n +N)      ……………(1)

राउल्ट के नियम की सीमाएँ (Limitations of Raoult’s Law)

1.राउल्ट का नियम (समीकरण-1) केवल अवाष्पशील वैद्युतअनपघट्यों के तनु विलयनों पर लागू होता है । सान्द्र विलयन राउल्ट के नियम से विचलन प्रदर्शित करते हैं।

2.राउल्ट का नियम (समीकरण-1) केवल उन अवाष्पशील पदार्थों के विलयनों पर लागू होता है जो विलायक से रासायनिक अभिक्रिया नहीं करते हैं।

3.वैद्युत अपघट्य विलयन में वियोजित (dissociate) होते हैं, उनके विलयनों पर राउल्ट का नियम लागू नहीं होता है। वैद्युत अपघट्य के वियोजन से विलयन में कणों (अणुओं व आयनों) की संख्या बढ़ जाती है जिस कारण उसके वाष्प दाब अवनमन का प्रायोगिक मान समान सान्द्रता के वैद्युतअनपघट्य के विलयन के लिए अपेक्षित मान से बहुत ऊँचा आता है।

4.जो पदार्थ विलयन में संगुणित (associate) होते हैं, उन पर राउल्ट का नियम लागू नहीं होता है। विलेय (solute) के अणुओं के संगुणन (association) से विलयन में उसके कणों की संख्या घट जाती है। जिस कारण वाष्प दाब अवनमन का प्रायोगिक मान अपसामान्य रूप से कम आता है।

राउल्ट के नियम द्वारा अवाष्पशील पदार्थों के अणु भारों की गणना

राउल्ट के नियम की सहायता से, वाष्प दाब के अवनमन के मापन द्वारा, अवाष्पशील वैद्युतअनपघट्य पदार्थों के अणु भारों की गणना की जा सकती है।

राउल्ट के नियमानुसार,

 (P⁰ – Ps)/P⁰ = n / (n +N)      ……………(1)

तनु विलयन में n का मान N की तुलना में नगड़ी होता है अर्थात n + N = N 

अत: समीकरण (1) से

(P⁰ – Ps)/P⁰ = n / N         ……………(2)

माना कि विलेय की मात्रा = w

विलेय का अणुभार      = m

विलायक की मात्रा      = W

विलायक का अणुभार = M

अतः n = w/m       N = W/M 

समीकरण (2) से

(P⁰ – Ps)/P⁰ = (w/m) / (W/M)

(P⁰ – Ps)/P⁰ = wM/mW

राउल्ट के नियम की सीमाएँ

(i) राउल्ट का नियम केवल तनु विलयनों के लिए ही प्रयुक्त किया जा सकता है।

(ii) राउल्ट का नियम केवल अवाष्पशील विलेय पदार्थों के विलयनों पर ही प्रयुक्त होता है। यदि विलेय वाष्पशील है तो वह विलयन का वाष्पदाब बढ़ा देगा और वाष्पदाब के अवनमन में विचलन उत्पन्न हो जायेगा।

(iii) राउल्ट का नियम ऐसे विलेय पदार्थों के लिए प्रयुक्त नहीं होता है जो विलयन में वियोजित (Dissociate) या संगुणित (Associate) हो जाते हैं।

वान्ट-हॉफ गुणांक (Van’t-Hoff Factor)

वान्ट-हॉफ ने सभी अपसामान्य गुणों,जैसे—अपसामान्य परासरण दाब अपसामान्य अणुभार आदि की व्याख्या करने के लिए एक गुणांक या कारक (Factor) प्रस्तुत किया जिसे वान्ट हॉफ गुणांक (i) कहते हैं, जिसे निष्ट प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-

किसी विद्युत-अपघट्य के विलयन के किसी अणुसंख्यक गुण के प्रायोगिक मान (या प्रेक्षित मान) और सामान्य मान [सूत्र से, परिकलित मान (Calculated Value)] के अनुपात को वान्ट-हॉफ गुणांक (i) कहते हैं। अतः

i = अणुसंख्य गुण का प्रायोगिक मान (या प्रेक्षितमान) / अणुसंख्य गुण का सामान्य मान

विलयन में विलेय के अणुओं का संगुणन होने पर कणों की प्रभावी संख्या में कमी एवं वियोजन होने पर कणों की प्रभावी संख्या में वृद्धि होती है। चूँकि अणुसंख्य गुण विलयन के प्रभावी कणों की संख्या पर निर्भर करती है तथा आण्विक द्रव्यमान के व्युत्क्रमानुपाती होती है अतः प्रेक्षित मान, संगुणन या वियोजन होने पर सामान्य मानों से क्रमशः अधिक या कम होते हैं। अतः अणुसंख्य गुणों के समीकरण में निम्न संशोधन किया जा सकता है।

क्वथनांक का उन्नयन (∆Tb) = i Kb m

हिमांक का अवनमन (∆Tf) = i Kfm 

परासरण दाब (P) = iCRT

वान्ट हॉफ गुणांक की उपयोगिता

(i) वान्ट हॉफ गुणांक (i) से संगुणन की कोटि एवं वियोजन की मात्रा ज्ञात की जा सकती है।

(ii) i का मान एक से कम होने पर अणुओं के संगुणन का ज्ञान होता है। जैसे बेन्जीन में बेन्जोइक अम्ल का विलयन। 

(iii) i का मान एक से अधिक होने पर अणुओं के वियोजन का ज्ञान होता है; जैसे- जल में NaCl का विलयन।

 

FAQs__________

प्रश्न.1- विलयन के अणुसंख्य (Colligative) गुण से आप क्या समझते हैं? ऐसे गुणों के नाम बताइये ।

उत्तर : विलयन के कुछ गुण उसके निश्चित आयतन में उपस्थित विलेय के कणों (या अणुओं) की संख्या पर निर्भर करते हैं। इन्हें अणुसंख्य गुणधर्म (Colligative Properties) कहते हैं। ये गुण विलेय की रासायनिक संरचना या संघटन पर निर्भर नहीं करते हैं। ये गुण निम्नलिखित हैं-

(i) विलयन का परासरण दाब (Osmotic Pressure of Solution),

(ii) वाष्पदाब अवनमन (Lowering of Vapour Pressure),

(iii) हिमांक का अवनमन ( Depression of Freezing Point),

(iv) क्वथनांक का उन्नयन (Elevation of Boiling Point)

प्रश्न.2- परासरण दाब पर सान्द्रण व ताप, दोनों की वृद्धि का क्या प्रभाव पड़ेगा? समझाइये।

उत्तर : वान्ट हॉफ के अनुसार, किसी विलयन का परासरण दाब विलेय कणों के अर्द्धपारगम्य झिल्ली पर टकराने से उत्पन्न होता है। विलयन के सान्द्रण में वृद्धि होने पर विलेय कणों की संख्या में वृद्धि होगी जिससे परासरण दाब भी बढ़ेगा। अर्द्धपारगम्य झिल्ली पर विलेय कणों की टक्कर अणुओं की गति पर भी निर्भर करती है। ताप में वृद्धि से अणुओं की गति बढ़ती है। अतः स्पष्ट है कि स्थिर आयतन पर परासरण दाब भी ताप – वृद्धि के साथ बढ़ेगा। 

परासरण दाब ∝ सान्द्रण (स्थिर ताप पर )

परासरण दाब ∝ ताप (स्थिर आयतन पर )

प्रश्न.3- छिलका उतरे हुए अंडे को जल में डालने पर वह फूल जाता है लेकिन नमक के संतृप्त विलयन में डालने से सिकुड़ जाता है।

उत्तर – अण्डे को NaCl के संतृप्त विलयन में रखने पर अण्डे का जल दोनों ओर सान्द्रण बराबर करने के लिए अण्डे से बाहर आता है और अण्डा सिकुड़ जाता है। अण्डे को जल में डालने पर यह क्रिया उल्टी दिशा में होती है, इस कारण अण्डा फूल जाता है।

प्रश्न.4- किसमिश जल में डालने पर फूलती है जबकि अंगूर चीनी के सांद्र विलयन में डालने पर पिचक जाता है। 

उत्तर : किशमिश को जल में डालने पर जल किशमिश के सान्द्र द्रव में परासरण क्रिया द्वारा भीतर चला जाता है जिससे किशमिश फूल जाती है। लेकिन अंगूर को चीनी के सान्द्र विलयन में डालने पर अंगूर के रस का जल, दोनों ओर का सान्द्रण बराबर करने के लिए अंगूर से बाहर चीनी के विलयन में आता है, अतः अंगूर पिचक जाते हैं।

प्रश्न.5- जल में सोडियम क्लोराइड घोलने से विलयन के क्वथनांक एवं हिमांक पर क्या प्रभाव पड़ता है? समझाइये।

उत्तर : जल में सोडियम क्लोराइड घोलने पर सोडियम क्लोराइड के अणु की सतह का कुछ भाग घेर लेते हैं, जिससे वाष्पन के लिए उपलब्ध पृष्ठ सतह कम हो जाती है। इसके फलस्वरूप वाष्पन कम हो जाता है तथा वाष्पदाब कम हो जाता है जिसके फलस्वरूप क्वथनांक बढ़ जाता है तथा हिमांक कम हो जाता है।

 

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